Thursday, May 22, 2008

Truth.......dare to face it ???

कितनी नफ्रते हैं. कितनी कमी है इतनी बडी दुनिया में मेरे लिए के आज दम घुट रहा है यहाँ. जब भी जीना चाहा, हालात नें जीने नहीं दिया, और आज जब मरना चाहता हूँ, हालात मरने नहीं देते....

एक ऐसे समाज में जीना पड़ता है, जहाँ ज़िन्दगी के खिलाफ सर उठाने वाले को लोग कमज़ोर कहते हैं....मौत से डरते हैं सब, मगर उसे अपनाने वाले को डरपोक कहते हैं....

सब इंसान हैं तो मैं क्या हूँ?? क्योंकि मैं सबकी तरहाँ तो हूँ ही नहीं...मेरी परिभाषा, मेरी भाषा, मेरी सोच, मेरे सपने....सब कुछ तो अलग हैं....आखिर कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ?? तुम लोगों से मेरा रिश्ता ही क्या है?? मैं इंसान तो नहीं हूँ, और मुझे ख़ुशी है के मैं सिर्फ एक एहसास हूँ. एक ऐसा एहसास जो अकेला तो है, मगर हर पल मरने के बाद भी जिंदा है. ज़िन्दगी का एक ऐसा रूप जिसे मौत का भी डर नहीं.....क्योंकि मैं सच्चाई हूँ.....मुझसे ऊपर कोई नहीं....मुझसे कोई भाग भी नहीं सकता, मगर मेरे करीब आने की हिम्मत भी हेर किसी में नहीं.....हाँ, मैं सच हूँ...

आज जब मैं देखता हूँ तुम लोगों को यूँ रोते हुए, तो लगता है के तुम मेरे रस्ते पे चले इसलिए रो रहे हो, मगर फिर पूछना चाहता हूँ तुमसे के मुझे अपनाने के बाद रोने की ज़रूरत क्या है???....क्यों उदास हो?? क्यों टूट रहे हो?? क्या इस लिए के तुम मेरा हिस्सा हो?? या इस लिए के कोई और मेरा हिस्सा नहीं???

नहीं, तुम रो रहे हो क्योंकि तुम खुदगर्ज हो....कभी अपनी ख़ुशी से ऊपर शायद सोचा ही नहीं तुमने.....कभी उस माँ का सोचो, जिसे अपने बच्चे का पेट पानी पिला के भरना पड़ता है, कभी महसूस करो उस पिता का एहसास जो शायद जीना ही भूल गया है, और सिर्फ ज़िंदा है घर चलाने के लिए. उस बच्चे के बारे में तो सोचो एक बार, जिसे दस साल की उम्र में भी अपने माँ बाप का नाम तक नहीं मालूम.....और अब सोचो अपने बारे में, ज़िन्दगी सारी खुशियाँ थाली में लेकर आती रही, और तुम कहते रहे "काफी नहीं" ??

यही है तुम्हारा सच.....यही हूँ मैं.....और इसलिए शायद, मेरा सामने आना मंज़ूर नहीं तुमको......अच्छा है !! कुछ वक़्त ही सही, हंस्लो अभी...मगर मेरा वादा है, एक दिन मेरा भी होगा. मैं आऊँगा ज़रूर,,,,,,,,,,,क्योंकि मैं सच हूँ....

तुम लोग तो दरवाज़े पे दस्तक देके आते हो, मगर मेरा आना कुछ अलग होगा..."जब आँख में आंसू आये तो समझ लेना के मैं हूँ,जब अपना कोई बिछड़ जाए तो समझ लेना के मैं हूँ,जब दुनिया में अकेले हो कभी तो समझ लेना के मैं हूँ,जब दोस्त, न महफिलें न मेले हो कभी, तो समझ लेना के मैं हूँ"

क्योंकि मैं तुम्हारी तरहाँ नहीं. मैं तुम्हारे साथ खुशियों में नहीं हूँ, मैं तो तुम्हारे साथ हूँ उन आंसूओ में जब तुम्हें तुम्हारी ही बनाई दुनिया भी छोड़ जाती है, और उन हालत में जब अपनों की याद बहुत आती है......क्योंकि मैं तुम्हारा अपना हूँ....

तुम्हारा अपना,सच
(written by Amit Sethi on 22nd May'08 at 1300 hrs)